गुरुकुलों से निकलते थे वर्ल्ड क्लास के आर्किटेक्ट और टेक्नोक्रेट
गुरुकुलों से निकलते थे वर्ल्ड क्लास के आर्किटेक्ट और टेक्नोक्रेट। ये गुरुकुल ब्राह्मण चलाते थे, लेकिन वे किसी राजा के वेतनभोगी नौकर नहीं होते थे।
मैकाले के पूर्व भारतीय गुरुकुलों में समस्त वर्णों के छात्र शिक्षा पाते थे। भारत के गुरुकुलों के बारे में एकत्रित किये गए डेटा को धरमपाल जी ने अपनी पुस्तक 'The Beautiful Tree' में संकलित किया है। उसके अनुसार उन गुरुकुलों में चारो वर्ण के छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे। इन गुरुकुलों में शूद्र छात्रों की संख्या द्विज छात्रों से चार गुना अधिक थी।
यदि शिक्षा को किसी समाज के वैभवशाली होने का प्रमाण माना जाय तो भारत के उस विशाल वैभव का राज उस गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था के कारण ही थी। यह व्यवस्था जब तक भारत में जीवित थी, किसी भी भारतीय को किसी विदेशी भूमि में जाकर गिरमिटिया मजदूर बनने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
The Case For India
विल दुरंत अपनी पुस्तक 'The Case For India' में उस वैभव के बारे में लिखता है: "मनुष्य के मस्तिष्क और हाँथ से बनने वाली दुनिया की सबसे बहुमूल्यतम वस्तुएं, जिनका मूल्य या तो उनकी उपयोगिता के कारण है, या फिर उनकी सुंदरता के कारण, वे सब भारत में हजारों वर्षों से निर्मित होती आयी थीं, जब अंग्रेजों ने भारत की धरती पर कदम रखा। भारत में दुनिया की विशालतम इंडस्ट्री थी। ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य भारत की इस इंडस्ट्री से उतपन्न होने वाले वैभव को लूटना था"।
इंडिया कंपनी का उद्देश्य
अभी हाल में भारत के विदेशमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर घोषणा किया कि मैकाले के पूर्वजों और वंशजों ने 45 ट्रिलियन डॉलर की लूट की।
उस लूट के प्रभाव से जो तबका सबसे अधिक प्रभावित हुवा उनके वंशजों को आज दलित आदिवासी घुमन्तू जातियां आदि आदि नामों से परिभाषित किया जा रहा है।
चल संपत्ति लूट ले गए। लेकिन उसी वैभव से निर्मित अचल संपत्तियां वे लूटकर इंग्लैंड नहीं ले जा सके। वे आज भी सुरक्षित हैं।
चल संपत्ति को लूट सकते थे, लेकिन अचल संपत्ति को कैसे लूटते। उनके माध्यम से लूटा गया भारतीयों को। उदाहरण स्वरूप 1806 में पुरी के मंदिर में उन्होंने एंट्री फीस रखी थी, 2 रुपये से दस रुपये तक। उसका वर्तमान मूल्य क्या होगा? लेकिन उन मंदिरों को वे अपने साथ नहीं ले जा सकते थे। वे मंदिर आज भी उस वैभव आर्किटेक्ट और टेक्नोक्रेसी का प्रमाण हैं।
Fractal Geometry
भारत मे आज भी लाखों ऐसे मंदिर और भवन हैं, जिनका निर्माण हजारों वर्ष पूर्व इन्हीं शूद्र या दलित कहे जाने वाले अर्चिटेक्ट्स के पूर्वजों ने किया था। उनका विकल्प आज भी उपलब्ध नहीं है विश्व में। वे ज्यामिति की आधुनिक कही जाने वाली 'Fractal Geometry' के सिद्धांतों के अनुसार बनी हैं।
उस गुरुकुल व्यावस्था को नष्ट करने के लिये ही भारत मे तथाकथित मैकाले शिक्षा पद्धति की नींव रखी गयी थी। इस पद्धति से निकले भारतीय किसी भी रोजगार लायक न बचे, सिवा बाबू या एडवोकेट बनने के।
और वहां भी हालत यह थी कि ब्रिटेन में बैरिस्टर गिरी पास करने वाले महात्मा गांधी को भारत की भूमि पर पेट पालने लायक भी काम न मिला। उन्हें अफ्रीका जाना पड़ा गिरमिटिया मजदूरों के साथ।
वहीं दूसरी तरफ अम्बेडकर उनसे भी ज्यादा पढ़ लिख गए। इंग्लैंड के बाद अमेरिका में भी पढ़ने चले गए। वे अपने लिए एक नौकरी न खोज पाये उस शिक्षा की बदौलत। और न ही वकालत चली उनकी। अंग्रेजों की गुलामी करने को बाध्य हुए।
इस शिक्षा से निकले दो नामचीन लोगों का क्या हुवा?
एक को रोजगार खोजने के लिए अफ्रीका जाना पड़ा। एक को अंग्रेजों ने अपने पास ही एम्प्लोयमेन्ट दे दिया।
अपनी राय दीजिये।
जय श्री राम
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