टक्कर का ही था। महाभारत में दुर है।
द्रोणाचार्य ने जब चक्रव्यूह की रचना की तो उसको तोड़ने के लिए कोई भी नही था क्योंकि अर्जुन युद्द करते करते बहुत दूर निकल गए थे और इस संकट से निकालने के लिए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का निर्णय किया लेकिन अभिमन्यु को चक्रव्यूह से निकलना नही आता था। तब युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को आश्वस्त किया कि वो चक्रव्यूह का जो दरवाजा तोड़ देगा उसको बन्द ही नही होने देंगे। ये बात दीगर है कि चारो पांडव उस दिन भगवान शंकर से जयद्रथ को मिले वरदान के कारण परास्त हो गए थे और चक्रव्यूह का दरवाजा खुला नही रख पाए थे।
चक्रव्यूह के अंदर अभिमन्यु का सामना दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण से हो गया और अभिमन्यु ने उसको मार डाला। अपने पुत्र की मृत्यु के कारण दुर्योधन ने क्रोधित होकर कर्ण, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, दुःशासन, कृतवर्मा को अभिमन्यु वध का आदेश दे दिया।
चक्रव्यूह के अंदर अभिमन्यु ने इन सातों महारथियों का जमकर मुकाबला किया लेकिन तभी दुःशासन का पुत्र दुर्मासन आकर अभिमन्यु से गदा युद्ध करने लगा और दोनों मूर्छित हो गए । दोनो जब होश में आये तो दुर्मासन ने पीछे से अभिमन्यु का कपाल फोड़ दिया और ततपश्चात सातो महारथियों ने अभिमन्यु का वध कर दिया।
दुर्मासन युद्ध मे बाद में भीम के द्वारा गदा युद्ध मे मारा गया तब भीम ने कहा कि मुझे नही पता था कि कौरवो में क्षेत्र में मेरी बराबरी की गदा युद्ध करने वाला भी एक गुमनाम योद्धा था !

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