मैं नर्मदा हूँ
जब गंगा नहीं थी,तब भी मैं थी।
जब हिमालय नहीं था, तभी भी मै थी।
मेरे किनारों पर नागर सभ्यता का विकास नहीं हुआ।
मेरे दोनों किनारों पर तो दंडकारण्य के घने जंगलों की भरमार थी।
इसी के कारण आर्य मुझ तक नहीं पहुँच सके।
मैं अनेक वर्षों तक आर्यावर्त की सीमा रेखा बनी रही।
उन दिनों मेरे तट पर उत्तरापथ समाप्त होता था और दक्षिणापथ शुरू होता था।
मेरे तट पर मोहनजोदड़ो जैसी नागर संस्कृति नहीं रही, लेकिन एक आरण्यक संस्कृति अवश्य रही।
मेरे तटवर्ती वनों मे मार्कंडेय, कपिल, भृगु, जमदग्नि आदि अनेक ऋषियों के आश्रम रहे।
यहाँ की यज्ञवेदियों का धुआँ आकाश में मंडराता था।
ऋषियों का कहना था कि तपस्या तो बस नर्मदा तट पर ही करनी चाहिए।
इन्हीं ऋषियों में से एक ने मेरा नाम रखा,
💐#रेवा।
रेव् अर्थात कूदना।
उन्होंने मुझे चट्टानों में कूदते फाँदते देखा तो मेरा नाम रेवा रखा।
एक अन्य ऋषि ने मेरा नाम
नर्मदा " रखा।
नर्म अर्थात आनंद।
आनंद देनेवाली नदी।
मैं भारत की सात प्रमुख नदियों में से हूँ।
गंगा के बाद मेरा ही महत्व है।
पुराणों में जितना मुझ पर लिखा गया है उतना और किसी नदी पर नहीं।
स्कंदपुराण का रेवाखंड तो पूरा का पूरा मुझको ही अर्पित है।
"पुराण कहते हैं कि जो पुण्य गंगा में स्नान करने से मिलता है, वह मेरे दर्शन मात्र से मिल जाता है।"
मेरा जन्म अमरकंटक में हुआ।
मैं पश्चिम की ओर बहती हूँ।
मेरा प्रवाह आधार चट्टानी भूमि है।
मेरे तट पर आदिम जातियाँ निवास करती हैं।
जीवन में मैंने सदा कड़ा संघर्ष किया।
मैं एक हूँ, पर मेरे रुप अनेक हैं।
मूसलाधार वृष्टि पर उफन पड़ती हूँ, तो गर्मियों में बस मेरी साँस भर चलती रहती है।
मैं प्रपात बाहुल्या नदी हूँ।
कपिलधारा, दूधधारा, धावड़ीकुंड, सहस्त्रधारा मेरे मुख्य प्रपात हैं।
ओंकारेश्वर मेरे तट का प्रमुख तीर्थ है।
महेश्वर ही प्राचीन माहिष्मती है।
वहाँ के घाट देश के सर्वोत्तम घाटों में से है।
मैं स्वयं को भरूच (भृगुकच्छ) में अरब सागर को समर्पित करती हूँ।
मुझे याद आया।
अमरकंटक में मैंने कैसी मामूली सी शुरुआत की थी।
वहाँ तो एक बच्चा भी मुझे लाँघ जाया करता था पर यहाँ मेरा पाट 20 किलोमीटर चौड़ा है।
यह तय करना कठिन है कि कहाँ मेरा अंत है और कहाँ समुद्र का आरंभ?
पर आज मेरा स्वरुप बदल रहा है।
मेरे तटवर्ती प्रदेश बदल गए हैं,
मुझ पर कई बाँध बाँधे जा रहे हैं।
मेरे लिए यह कष्टप्रद तो है पर जब अकालग्रस्त, भूखे-प्यासे लोगों को पानी, चारे के लिए तड़पते पशुओं को, बंजर पड़े खेतों को देखती हूँ, तो मन रो पड़ता है।
आखिर में माँ हूँ।
मुझ पर बने बाँध इनकी आवश्यकताओं को पूरा करेंगें।
अब धरती की प्यास बुझेगी।
मैं धरती को सुजला सुफला बनाऊँगी।
यह कार्य मुझे एक आंतरिक संतोष देता है।
त्वदीय पाद पंकजम,नमामि देवी नर्मदे...
नर्मदे सर्वदे
(अमृतस्य नर्मदा)
❤
श्री नर्मदाष्टकम
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
1- सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम।
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम।।
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
2- त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम।
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं।।
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
3- महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं।
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम।।
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
4- गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा।
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा।।
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
5- अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं।
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम।।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
6- सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै।
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:।।
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
7- अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं।
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं।।
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
8- अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे।
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे।।
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
9- इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा।
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा।।
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम।
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
(नर्मदा माता की मूर्ति:
कमनीया गेट,जबलपुर)
सबका कल्याण करो माते नर्मदे
जयति पुण्य सनातन संस्कृति
जयति पुण्य भूमि भारत
जयतु जयतु हिन्दूराष्ट्रं
सदा सर्वदासुमंगल
नर्मदे हर हर
हर हर महादेव
जयभवानी
जयश्रीराम
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