Innocent women were murdered in the church by calling them witches.

Why were women murdered in the church by calling them witches 


सतियों की बात शुरू करने से पहले कुछ बातें समझनी जरूरी होती हैं। इसके लिए विकट हीनू मूर्खता से निपटना आवश्यक हो जाता है इसलिए बात इधर उधर जाएगी। जैसे कि गलती हो जाये तो उसे सुधारा जायेगा क्या? हिन्दुओं के साथ ये सामाजिक विशेषता है कि अगर समाज में कुछ गलत होना शुरू हो जाये, तो तुरंत सुधार की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। यहाँ पहले “तुरंत” का अर्थ समझना होगा। हिन्दुओं की सभ्यता का काल कोई 1400-2000 वर्ष पुराना नहीं है बल्कि उससे कहीं अधिक लम्बा है। तो जहाँ दस हजार वर्ष जैसा इतिहास हो, वहाँ तुरंत का मतलब 100-200 वर्ष तो होगा ही। 
दूसरा अंतर जो समझना होता है वो है धार्मिक और सामाजिक का अंतर। जैसे विवाह के लिए वैदिक मन्त्र एक धार्मिक व्यवस्था है। विवाह के समय दुल्हन पीली साड़ी पहनेगी या लाल जोड़े में होगी, ये अलग-अलग जगहों की अलग-अलग सामाजिक व्यवस्था होती है। असम में दुल्हन ने जैसी मेखला पहनी होगी, महाराष्ट्र में वैसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। दक्षिणी भारत में जैसी धोती वर ने लपेटी होगी, वैसी हिमाचल में तो पहनेगा नहीं न? इसलिए जब आप समाज सुधार की बात कर रहे हैं, तो पहले ये बताइये कि आप सामाजिक व्यवस्था में सुधार की बात कर रहे हैं, या धार्मिक व्यवस्था में? सुधार और बदलाव (हिन्दुओं के लिए) दोनों में संभव हैं।

तीसरी बात जो समझने लायक होती है, वो है नीचा दिखाने की प्रवृति। जिन मजहबों/रिलिजन या राजनैतिक विचारधाराओं में कन्वर्शन यानी धर्म-परिवर्तन करवाने की प्रवृति होती है, उनके पास दो उपाय होते हैं। एक तो अपने मजहब/रिलिजन को आपके धर्म से बेहतर सिद्ध करें। दूसरा कि आपके धर्म को अपने मजहब/रिलिजन से ओछा सिद्ध करने के लिए आपके धर्म में सौ खोट गिनवाएं। इसके लिए थ्री सी – कन्विंस, करप्ट और कंफ्यूज इस्तेमाल होता है। कन्विंस मुश्किल है, उसमें सिद्ध करना होता है की वो बेहतर हैं, तभी कोई कन्विंस होगा, किसी को विश्वास होगा कि वो गलत रास्ते पर था।
करप्ट यानी भ्रष्ट करना थोड़ा सरल हो जाता है। जैसी गाँव के कुँए में गौमांस डाल दिया और जैसे ही लोगों ने उसका पानी पी लिया तो कहने अ गए कि तुम सब ने गौमांस/गौरक्त खा/पी लिया है इसलिए तुम हिन्दू ही नहीं रहे। जैसे प्रसिद्ध गायक डागर बंधुओं का इतिहास देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि उनके एक पूर्वज ने मुगल दरबार में पान खा लिया था इसलिए उन्हें हिन्दू धर्म से ही बाहर जाना पड़ा। ऐसी ही कहानी काला पहाड़ की मिलेगी जिसने मुहम्मडेन लड़की से विवाह किया तो उसे हिन्दुओं से निकाल बाहर किया गया। कुछ ऐसा ही बाजीराव की कहानी में भी दिखेगा। जहाँ भी कुछ उत्कोच (लाभ) दिया जा रहा है, वो करप्ट यानि भ्रष्ट करने का ही मामला हुआ।

तीसरा जो कंफ्यूज करना है वो भी आपको प्रश्नों में दिख जायेगा। हर व्यक्ति से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो सभी या कई-कई हिन्दू धर्म ग्रन्थ पढ़कर बैठा हो। हिन्दुओं में रिलिजन या मजहब की तरह “कॉम्पेरेटिव रिलिजन” पढ़ने की कोई व्यवस्था भी नहीं होती, इसलिए भी हिन्दुओं ने दूसरे रिलिजन/मजहब की तुलना में अपने धर्म को नहीं देखा होता। इंडोलोजी की पढ़ाई भारतीय विश्वविद्यालयों में भी नहीं होती। तो तुम्हारे इतने सारे भगवान क्यों हैं, एक ईश्वर को क्यों नहीं मानते, स्त्रियों को तुम्हारा धर्म अधिकार नहीं देता, ऐसे सवाल करके कंफ्यूज करना भी आसान है। ये तीनों ही, सभी थ्री सी प्रयोग में लाये जाते हैं।

इतनी समझ के बाद जैसे ही सती के प्रश्न पर आयेंगे तो सबसे पहले ध्यान जाता है कि गुलामी के समय में, किसी और सभ्यता को हमपर थोपे जाने का जब प्रयास हो रहा था, उस काल में हिन्दुओं का जो व्यवहार था, उसे सामान्य व्यवहार मान लेना ही मूर्खता है। उसका आरोप हिन्दुओं पर कैसे थोपा जा सकता है? युद्ध क्षेत्र में कोई तलवार, बन्दूक, हथियार चला रहा था इसलिए उसके पूरे समुदाय को ही, पूरी संस्कृति को ही हिंसक कहोगे क्या? युद्ध क्षेत्र में उसने शत्रुओं को ललकारा होगा, कई अपशब्द कहे होंगे, इसलिए उसकी भाषा को ही गालियों की भाषा मान लोगे क्या? नहीं न! ये देखा जायेगा न कि बाकी की सभ्यताएँ-संस्कृतियाँ उसी काल में कैसा बर्ताव कर रही थीं।
जब बराबरी की तुलना होती है तो फौरन आपको जोन ऑफ आर्क याद आ जाएगी। वो इलाज कर पाती थी, युद्ध में लड़ रही थी इसलिए उसे डायन घोषित करके जीवित ही जला दिया गया था। रिलिजन में स्त्रियों को जीवित जला देने की जो व्यवस्था थी, उसी के बराबर में हिन्दुओं को भी घोषित करने के लिए सती प्रथा कहकर नीचा दिखाया जाता है। शत्रुबोध विहीन और आत्महीनता से ग्रस्त बेचारे हिन्दू इतना सुनते ही थ्री सी का कंफ्यूज भी हो जाते हैं, और स्वयं ही अपनी पीठ पर कोड़े बरसाने लगते हैं। सिर्फ सती प्रथा में ही नहीं, जौहर में भी ये दिख जायेगा। अशोक के आक्रमणों में जौहर सुनाई देता है? राजाराज चोल के आक्रमणों में कभी जौहर सुना? मराठों के हमले में जौहर हुए क्या? नहीं, केवल विदेशी आक्रमणों में ही जौहर हुआ है।

रामायण-महाभारत उठा लेने पर भी यही देखने को मिलेगा। दशरथ की रानियाँ सती होती हैं क्या? विदेशी रावण अपनी बहन सूर्पनखा को विद्युत्जिह्वा की मृत्यु के बाद सती होने से रोकता है। मेघनाद की पत्नी उसकी मृत्यु पर सती हो जाती है। मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम तो ठीक इसका उल्टा करवा रहे होते हैं। बाली की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी-पुत्र का जिम्मा सुग्रीव को सौंप देते हैं। रावण के बाद मंदोदरी का विवाह विभीषण से करवाते हैं। मर्यादापुरुषोत्तम से ज्यादा धर्म तो नहीं जानते न? ये तो मानना पड़ेगा कि ये कोई धार्मिक व्यवस्था नहीं थी, सामाजिक बुराई थी जो किसी काल में आयी और अब लुप्त भी हो चुकी है। हिन्दुओं ने स्वयं ही सुधार लिया।
बात उसपर होनी चाहिए जो लुप्त नहीं हुई। जहाँ भी रिलिजन का प्रभाव अधिक है, वहाँ डायन बताकर विधवा या निःसंतान स्त्रियों की हत्या करने का कुकृत्य अभी भी होता है। चूँकि ये बहुसंख्यक हिन्दुओं की समस्या नहीं है, इसलिए सामाजिक तौर पर इसपर चर्चा कम होती है। अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता के कारण व्यावसायिक मीडिया भी इसपर खुलकर चर्चा नहीं करती। हमारे समाज और देश के लिए रिलिजन से जुड़ी सामाजिक बुराई अभी डायन बताकर स्त्रियों की हत्या करना है। उसपर खुलकर बात होनी चाहिए। अक्सर इसके पीछे कारण ये होता है कि विधवा/निःसंतान स्त्री की जमीन/संपत्ति हड़पी जा सके।

चर्चा और जाँच न होने के कारण अल्पसंख्यक समुदाय की स्त्रियों की ये समस्या अभी भी विकराल रूप में है। “सर्व धर्म समभाव” की भावना रखने वाले, जो लोग अल्पसंख्यक विरोधी नहीं हैं, उन्हें चाहिए कि पहले डायन बताकर जो स्त्रियों की हत्या की जा रही है, उसपर बात करें। कबतक इतिहास में सर घुसाकर कूप-मंडूक बने रहेंगे?


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