बौध्ध धर्म में बौद्धोँ का ढोग और पाखंड

।। बौध्ध धर्म में बौद्धोँ का ढोग और पाखंड ।।


बुद्ध एक ढोँगी पाखंडी धर्म है आत्मा परमात्मा को मानते नहीं  फिर भी क्या जाने किसकी ,तपस्या साधना मेँ मगन रहते हैँ, बिना आत्मा का पुर्नजनम भी करवा देते हैँ।एक दिन मेँ ग्यान प्राप्त कर लेते हैँ।दुःख का कारण खोजने मेँ हि दुःखी रहते हैँ ।संसार दुःख का कारण है इसे छौड़ दो बोलकर आत्महत्या को बढाबा देते है इस जीवन से इतना डरे हुए होते हैँ कि दुसरा जन्म नहि चाहते।यहाँ देखेँ बौद्ध भि...क्षु किस अंधविशवास मेँ अपना प्राण त्यागता है
ब्राह्मण कर्मकांडो के विरोधी हैँ खुद उल जुलुल कर्मकाँड करते हैँ सिर मुँडबा लेते हैँ भिक्षा माँगते हैँ पहिया घुमाते हैँ अगरबती घुमाते है बुद्ध के सामने और उन्हेँ भगबान भी नहि मानते ।कर्मकांड ब्राह्मणोँ जैसेकरते हैँ फिर भी ब्राह्मण कर्मकांडोँ का विरोध करते हैँ।वेद का विरोध करते हैँ लेकिन तत्बग्यान उपनिषद से ही चोरी करते है।यहाँ देखेँ बौद्धोँ का हिन्दु धर्म से साहित्यिक चोरी
ये हिन्दु धर्म के अंधविशवास का विरोधकरते हैँ लेकिन ये आज तक अपने धर्म संप्रदाय का हि अंधविशवास खत्म नहिँ कर पाये।व्रज्यान पुरा जादु टोने का हि बौद्ध का संप्रदाय है।ये अत्यंत बहशी प्रवृति के होते हैँ ।इनके शव संस्कार कि प्रक्रिया अत्यंत बहशी और मानवता के विरुद्ध होता है ये लोग अपने घर के परिजनोँ के लाश को काट काट कर या पुरे गिद्धोँ के हवाले कर देतेँहै जो कसाई से भी बदतर कृत माना जायेगा।यहाँ देखेँ कैसे ये शव संस्कार करते हैँ
अय्याशी अवैध संबंधोँ को ढकने के लिए कैसी बात उडा कर रखे है देखेँ शीलावती बौद्ध भिक्षुनी कि ढोँढी पैर के अँगुठे से शाक्य देव देवलोक से आकर छु देते हैँ तो बच्चा पैदा हो जाता है। बौद्ध का इतिहास गद्दारी से भरा पड़ा है आपको अशोक के पहले का एक भी बङा मंदिर नहि मिलेगा ।बहुत सारे मंदिरोँ को लूट कर बौद्धोँ ने विध्वंश कर दिया।ये पहले ग्रीक फिर मुगलोँ को भी अपने मठ विहारमेँ छुपाते थे मंदिरोँ को लुटबाते थे।इस तरह भारत मुगलोँ के गुलाम बना।इनकी गद्दारी देख लाखोँ बौद्ध लोग फिर से हिन्दु बनगये।ये चोरवा धर्म है कुछ भी अपना नहि है इसका ।दान नहि लेते मगर स्तुप बना लेते हैँ।मठ डकैती के सँपत्ति से भर जाता था पहले।अभी इस सँपति पर दलाइलामा काबिज रहते हैँ ।भारत के धर्मशाला छोङते नहि हैँ और यहिँ सबसे ज्यादा र्पोर्पटि है बोद्धोँ का।बौद्ध मेँ समानता देखने बाले ये बताओ बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदायोँ मेँ क्योँ बंटा हुआ हैं जो एक दुसरे को गरियाते नहि थकते--------- संदीप अग्रवाल जी द्वारा लिखित 
लंबी प्रक्रिया के बाद खुद ही ममी में परिवर्तित हो जाते थे जापानी भिक्षु----

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उत्तरी जापान में लगभग दो दर्जन से अधिक जापानी भिक्षुओं की ममी मिली थी। इतिहासकारों के अनुसार इन बौद्ध भिक्षुओं को 'सोकूसिनबुत्सू' के नाम से जाना जाता था। शूगेन्दों (बौद्ध धर्म का पुराना पंथ) के अनुयायियों के अनुसार जापान के ये भिक्षु अपने पापों से मुक्ति के लिए आत्मबलिदान दिया करते थे और स्वयं को ममी में परिवर्तित किया करते थे।
इतिहासकारों के अनुसार देह त्यागने की इस प्रथा की शुरूआत 1000 साल पहले माउंट कोया स्थित मंदिर के कुकई नामक एक भिक्षु ने की थी। 'सेल्फ ममीफिकेशन' (जीवित शरीर को ममी में बदलना) की इस प्रथा को तीन प्रक्रियाओं के अनुसार अंजाम दिया जाता था और इस प्रक्रिया को पूरी होने में दस साल का समय लगता था।
सेल्फ ममीफिकेशन की प्रक्रिया -
इस प्रक्रिया का पहला चरण था खान-पान बदलना। इस चरण में भिक्षु मंदिर के आस-पास जंगलों में मिलने वाले बीज आदि खाया करते थे। इस तरह का आहार भिक्षुओं द्वारा 1000 दिनों तक लिया जाता था। लंबे समय तक इस तरह के आहार लेने से उनके शरीर की चर्बी कम हो जाती थी।
इसके बाद की प्रक्रिया-
भिक्षु खाने में सिर्फ देवदार के पेड़ की जड़ें खाया करते थे। परिणामस्वरूप उनके शरीर की नमी ख़त्म होने लगती थी और उनका शरीर सूखने लगता था और शरीर पर कंकाल मात्र शेष रह जाता था।
1000 दिनों की इस प्रक्रिया में भिक्षु ऊरूषि नामक पेड़ के पत्तों से बनी चाय का सेवन किया करते थे। यह काफी जहरीला होता है।
अंतिम प्रक्रिया-
इस अंतिम प्रक्रिया में भिक्षु एक बंद कमरे में खुद को कैद कर लिया करते थे, जहां कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो जाती थी और भिक्षु का शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था।
ममी बनने की अनोखी प्रक्रिया-
मिस्त्र के इतिहास में झांका जाए तो ममी बनाने के लिए मृतकों की देह पर रासायनिक लेप लगाया जाता था, लेकिन इन भिक्षुओं के द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी प्रक्रिया और अनोखे आहार सेवन के कारण इनका शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था। कई चरणों में होने वाली सेल्फ ममीफिकेशन में हर प्रक्रिया 1000 दिनों की होती थी, जिसके कारण इसे पूरा होने में लगभग 10 सालों का समय लगता था।

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